(मनोरमा सिंह) कर्नाटक का कुर्ग यानी योद्धाओं की भूमि। यहां हर घर से एक सदस्य के सेना में जाने की परंपरा है। इस इलाके ने देश को एक ही समय में लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के 3 अफसर दिए हैं। अभी भी यहां केे 100 से अधिक सैन्य अफसर देश की रक्षा में तैनात हैं। इनमें 10 से ज्यादा महिलाएं भी हैं।
ट्रेडिशन ऑफ कोदगू सोल्जर्स के लेखक वीसी दिनेश बताते हैं कि 11 लेफ्टिनेंट जनरल, 20 मेजर जनरल और 4 एयर मार्शल यहां से हैं। इसी वजह से कुर्ग को लैंड ऑफ जनरल भी कहा जाता है। यहां के युवाओं का सेना से जुड़ाव बना रहे, इसके लिए वॉर मेमोरियल और वॉल ऑफ हीरोज स्मारक बनाए गए हैं।
देश के पहले कमांडर इन चीफ के.एम.करियप्पा और जनरल थिमैया का घर भी वॉर मेमोरियल में बदला गया है। वे बताते हैं कि यहां के लोगों ने कुर्ग वेलनेस फाउंडेशन बनाया है, जिसमें नंगे पैर मैराथन कराई जाती है। आजाद भारत के पहले कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल के.एम.करियप्पा के बेटे एयर मार्शल नंदा करियप्पा रिटायरमेंट के बाद पर्यावरण के लिए काम कर रहे हैं।
कर्नल (रिटायर) केसी सुब्बैया भी गरीब बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। वो कहते हैं कि कुर्गी होने के मतलब है-‘लेट्स फेस इट’ यानी चुनौती चाहे जैसी हो, उससे लड़ना ही है। कुर्ग के ही लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) बीएनबीएम प्रसाद सेना में डॉक्टर रहे हैं। कहते हैं कि प्रेरणा के लिए हमें अपने इतिहास का गौरव हमेशा याद रखना चाहिए।
कुर्ग के सैनिक स्कूल के इतिहास में पहली बार 500 महिलाओं के आवेदन आए थे, इनमें से 9 छात्राओं को एडमिशन मिला है। कोरोना का युवाओं की तैयारी पर असर न पड़े इसलिए ऑनलाइन प्रतियोगिताएं हो रही हैं।
यहां का पहनावा योद्धाओं जैसा, सोने या चांदी की म्यान वाली खास कटार रखते हैं
कुर्ग लोगों की पारंपरिक पोशाक भारत से बिल्कुल अलग है। पुरुष घुटनों तक लटकने वाले कोट और सफेद दुपट्टा पहनते हैं। साथ ही चांदी या सोने की म्यान-दार कटार रखते हैं। यहां की महिलाएं भी साड़ी पहनते वक्त प्लेट पीछे की ओर रखती हैं और खास ढंग से पल्लू लेती हैं।
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