आज के समय में खुश रहना सबसे मुश्किल होता जा रहा है। दुनियाभर में जो कुछ भी हो रहा है, उसे देखते हुए हम खुशी के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं? यह बड़ा स्वाभाविक प्रश्न है। जब सबकुछ सही चल रहा हो, तब हर कोई खुश रह सकता है। यह तो बहुत आसान है। इसके लिए परिपक्वता की आवश्यकता नहीं है। लेकिन क्या इन परिस्थितियों में भी मैं खुशी तलाश सकता हूं? क्या ऐसे समय में खुशी के बारे में सोचना भी सही है, जब दुनिया इतनी मुश्किलों से गुजर रही है?
लेकिन मैं मुस्कुराने की हिम्मत करता हूं। सभी का सुप्रभात, शुभ-संध्या कहकर अभिवादन करता हूं। जो सबकुछ हो रहा है, उसके बावजूद। यकीन मानिए, मैं जो कुछ हो रहा है, उसे लेकर आंखें मूंदकर नहीं बैठा हूं। लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि मैं क्या देख रहा हूं। सबसे पहले तो यह अहसास है कि किस तरह एक अदृश्य जीव ने पूरी दुनिया को रोक दिया। यह चिंताजनक लग सकता है कि बतौर इंसान हमने इतनी प्रगति की है, इतना कुछ हासिल किया है, लेकिन एक अदृश्य जीव ने पूरी दुनिया को अपने नियंत्रण में ले लिया, सारी जिंदगियों को अपने कब्जे में कर लिया। यानी बहुत सारी बातें व्यथित करने वाली हैं, लेकिन बहुत सारी आस्था भी है।
चूंकि हमें इस अदृश्य जीव से लड़ना है, इसलिए हमें अपनी शक्ति, अदृश्य शक्ति से ही हासिल होगी। इसलिए प्रार्थना पर आस्था, उस अलौकिक शक्ति पर आस्था बनी हुई है, जो हमारे आर-पार देख सकती है। एक समय सभी धार्मिक स्थलों के दरवाजे बंद रहे, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं देने वालों के द्वार खुले रहे। डॉक्टर इस दौर से निकलने में हमारी मदद कर रहे हैं। इसलिए अत्यंत आभार की भावना है। और मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मैं आप सभी की तरफ से ये वादा करूं कि हम कभी भी मेडिकल से जुड़े लोगों का मजाक नहीं उड़ाएंगे, उनपर तंज नहीं कसेंगे क्योंकि वे इस मुश्किल दौर में हमारे साथ खड़े हैं।
इस समय विज्ञान के लिए भी बहुत सम्मान है क्योंकि यह पहली महामारी, पहला वायरस नहीं है, जिसका हम सामना कर रहे हैं। और विज्ञान ने पहले भी कई महामारियों, वायरसों पर जीत हासिल की है। इस बार वायरस ने अचानक हमला किया और हम मुश्किल समय से गुजर रहे हैं। लेकिन मुझे विज्ञान पर भरोसा है। हमें वैक्सीन मिल जाएगी और भविष्य में इसका इलाज होने लगेगा।
जैसा कि हमने अतीत में किया है। यह संकट बड़ा लगता है क्योंकि मरने वालों की बड़ी संख्या है, लेकिन हम यह भी समझें कि इस संख्या से कहीं ज्यादा लोग ठीक हो चुके हैं और फिर सामान्य जीवन जीने लगे हैं। यह सराहनीय है कि हम सब कैसे मिलकर कोरोना से लड़ रहे हैं और व्यक्तिगत जागरूकता की शक्ति दिख रही है।
मैं बस यह कहना चाहता हूं कि हमें जिंदगी से कभी यह नहीं कहना चाहिए कि हम क्या नहीं चाहते हैं। बल्कि जिंदगी से यह कहिए कि हमें क्या चाहिए। और हम जीवन से यह चाहते हैं कि वह आज के दिन को आर-पार देखे। मानवता की सम्मिलित शक्ति, आध्यात्मिकता में आस्था और विज्ञान में विश्वास ही हमें जिताएगा।
जैसे हमने अतीत में इतने संकटों पर जीत हासिल की, इनकी मदद से हम इस संकट से भी उबर जाएंगे। हम लंबे जिएंगे और हमारी आने वाली पीढ़ी को बताएंगे कि हमने इस सब पर कैसे जीत हासिल की। यह एक ऐतिहासिक तथ्य बन जाएगा जो हमें अतीत के बारे में हमेशा याद रहेगा और हम जीवन के इस दौर के आर-पार देख पाएंगे। मेरी मानव शक्ति की सम्मिलित ताकत पर दृढ़ आस्था है।
सतर्क रहें, सभी सावधानियां बरतें जिनके बारे में आपको बताया गया है। लापरवाही न करें, अभी दंभ के लिए कोई जगह नहीं है। जब यह संकट गुजर जाएगा तब हम खुश वाले खुश होंगे, तब हमें डरकर खुश नहीं रहना होगा। आप मुझे भोला समझ सकते हैं, लेकिन मैं विचारों से अवसरवादी हूं।
मैं मन को किसी चुंबक की तरह इस्तेमाल करता हूं। उसे आकर्षित करता हूं जो मैं चाहता हूं। उसे पीछे हटाता हूं, जो मैं नहीं चाहता। और इस तरह मैं इन परिस्थितियों में भी दु:ख की जगह खुशी को चुनता हूं। आप भी ऐसा कर सकते हैं। खुश आप, खुश मैं, खुश मानवता।
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source https://www.bhaskar.com/db-original/columnist/news/we-should-never-say-in-life-what-we-do-not-want-rather-say-in-life-what-we-want-127646587.html
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