नीति बनाने वाले भूल गए हैं, स्वास्थ्य सेवाओं से भी जीडीपी बढ़ सकती है; अब 70 साल से चली आ रहीं गलतियों को सुधारने का मौका है - achhinews

Home Top Ad

Responsive Ads Here

Post Top Ad

Your Ad Spot

Post Top Ad

Blossom Themes

Wednesday, 19 August 2020

नीति बनाने वाले भूल गए हैं, स्वास्थ्य सेवाओं से भी जीडीपी बढ़ सकती है; अब 70 साल से चली आ रहीं गलतियों को सुधारने का मौका है

पिछले महीने से देशभर की आशा कार्यकर्ता हड़ताल पर हैं। भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था के सबसे निचले स्तर पर ‘आशा दीदी’ हैं। उनकी मांग है कि उन्हें रु. 10,000 मासिक वेतन मिले व पीपीई किट मिले। कोरोना की लड़ाई में आशा कार्यकर्ताओं की बड़ी भूमिका रही है क्योंकि वे गांव-गांव में उपस्थित हैं।

कोरोना महामारी से हुई मौतों और आर्थिक हानि के चलते दुनियाभर में देशों की नीतियों पर सवाल उठे हैं। भारत में भी प्रमुख सवाल यह होना चाहिए कि देश में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च इतना कम क्यों है? जहां इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों में जीडीपी का 7-10% स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है, भारत में यह 1% के आसपास ही रहा है।

क्यों इस खर्च में स्वास्थ्य ढांचे की ऊपरी सीढ़ी को प्राथमिकता दी गई और प्राथमिक उपचार को नज़रअंदाज़ किया गया? क्यों बीमा पर ज़्यादा ज़ोर है और प्राथमिक उपचार को दरकिनार किया जाता है। ऐसी नीति की मूर्खता समझने के लिए एक उदाहरण काफी है।

अगर घाव ड्रेसिंग से ठीक हो सकता है तो बढ़ाना क्यों

मान लीजिए आपके पांव में घाव है। यदि स्वास्थ्य व्यवस्था में प्राथमिक उपचार सबसे मज़बूत कड़ी है तो घाव तुरंत ड्रेसिंग से ठीक हो सकता है। यदि स्वास्थ्य व्यवस्था, स्वास्थ्य बीमा पर टिकी है, तो आपको घाव के गंभीर होने की राह देखनी पड़ेगी क्योंकि ज्यादातर बीमा का पैसा तब ही मिलता है जब अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आए। ऐसी व्यवस्था से दो नुकसान हैं। एक, तकलीफ ज़्यादा होगी, बीमारी लंबी चलेगी और घाव बिगड़ने पर अंगभंग हो सकता है। दो, केवल एक ड्रेसिंग से जो काम हो सकता था, अब उसमें ऑपरेशन का खर्च उठाना पड़ सकता है।

इलाज से बेहतर है बचाव

जन स्वास्थ्य का मूल सिद्धांत है कि इलाज से बेहतर बचाव है। बीमारी को जड़ न पकड़ने दें, तो जान और पैसा दोनों बचा सकते हैं। यानी सबसे निचले स्तर (प्राथमिक उपचार) का मज़बूत होना ज़रूरी है। यदि इंग्लैंड में नेशनल हेल्थ सर्विस को देखें तो नर्स बड़ी मात्रा में हैं (प्रति 1000 लोगों पर 8 नर्स), फिर सामान्य डॉक्टर (3/1000) और फिर स्पेशलिस्ट डॉक्टर।

यदि नर्स पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाए तो स्वास्थ्य पर खर्च कम होता है (क्योंकि नर्स का वेतन डॉक्टर से काम होता है)। दूसरी ओर बीमारी की पहचान जल्दी होने से इलाज पर भी कम खर्च होता है। भारत में इसके विपरीत, ढांचे के ऊपरी पायदान पर ज़्यादा खर्च होता है और निचले स्तर पर कम। उदहारण के लिए, देश में प्रति हज़ार व्यक्ति पर 2 से भी कम नर्स हैं, और लगभग 1 डॉक्टर।

निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं को सही प्रशिक्षण देना जरूरी

निचले स्तर पर नियुक्त कार्यकर्ताओं को सही प्रशिक्षण व काम का अच्छा माहौल भी ज़रूरी है। यहां भी भारत की नीतियों पर सवाल उठते हैं। डॉक्टर को कम से कम बेसिक उपकरण उपलब्ध होने चाहिए: बैठने की जगह, टॉयलेट की व्यवस्था से लेकर खून और अन्य जांच की सेवाएं, दवाइयों की उपलब्धता, इत्यादि। ऐसे ही नर्स और अन्य निचले कार्यकर्ताओं के लिए भी काम करने की मूल सुविधाएं उतनी ही ज़रूरी हैं, जितना उनको समय पर वेतन मिलना।

शोधकर्ताओं, डॉक्टरों और अन्य लोगों की लंबे समय से मांग है कि देश में स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने का लोगों का हक़, कानूनी रूप से लागू हो। दुनिया के कई देशों में ऐसा क़ानून है। कानून लाने के लक्ष्य के प्रति पहला कदम यह हो सकता है कि देश की आशा कार्यकर्ताओं की मांगें पूरी की जाएं।

वे आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और एएनएम (नर्स) के साथ मिलकर काम करती हैं। उन्हें तनख्वाह की बजाय मानदेय और संस्थागत डिलीवरी व अन्य कार्यों के लिए प्रति केस प्रोत्साहन राशि मिलती है। लेकिन उनका काम कुछ ही घंटों का नहीं होता, जैसा कि नियुक्ति के समय माना जाता है, बल्कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता या नर्स की तरह लगभग पूरे दिन का काम होता है। मानदेय में उन्हें रु 2000 प्रतिमाह दिए जाते हैं। इसे देने में देरी आम है।

लंबे समय से आशा की मांग रही है कि उनकी नियुक्ति नियमित सरकारी कर्मचारी के रूप में हो और मानदेय की बजाय उन्हें तनख्वाह दी जाए। महामारी से जूझ रहे देश में 70 साल से चल रही स्वास्थ्य नीति और खर्च की उपेक्षा की ग़लती को सुधारने का मौका है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
रीतिका खेड़ा, अर्थशास्त्री, दिल्ली आईआईटी में पढ़ाती हैं


source https://www.bhaskar.com/db-original/columnist/news/policymakers-have-forgotten-health-services-can-also-increase-gdp-127633140.html

No comments:

Post a Comment

Post Top Ad

Your Ad Spot