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Saturday, 20 June 2020

चीन के कर्ज में फंसी दुनिया, 150 से अधिक देशों को 112.5 लाख करोड़ रुपए का बांट रखा है लोन

ईसा के जन्म से 500 साल पहले चीन के नामचीन फौजी जनरल सुन जू ने ‘द आर्ट ऑफ वॉर’ नाम की किताब में लिखा था, ‘जंग की सबसे बेहतरीन कला है कि बिना लड़े हुए ही दुश्मन को पस्त कर दो’। चीन में इस किताब को आज भी वैसा ही माना जाता है जैसा भारत में चाणक्य नीति को। माना जा रहा है कि चीन जंग की इस कला के अनुसार ही अपने पड़ोसी देशों से व्यवहार करता है। कमजोर पड़ोसियों को कर्ज के जाल में फंसा लेता है और सक्षम पड़ोसियों को विवादों में फंसा कर रखता है। 150 से अधिक देशों को 112.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज बांट रखा है। हाल ही में लद्दाख और अक्साई चिन के बीच स्थित गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच गंभीर झड़प हुई जिसमें 20 भारतीय जवान शहीद हो गए।

इस झड़प के बाद देश भर में बॉयकाट चाइना की लहर चल पड़ी है। हालांकि यह मांग एक दशक से भी पुरानी है, लेकिन इस बार देश के बड़े व्यापारिक संगठनों और केंद्र सरकार के द्वारा उठाए गए कुछ कदमों ने इसे चर्चा में ला दिया है। द कंफेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के अनुसार चाइनीज उत्पादों के विकल्प के रूप में स्थानीय भारतीय उत्पादों का उपयोग असंभव नहीं है, लेकिन कठिन जरूर है। कैट के अनुसार अगर भारत में चीन से आयात किए जा रहे उत्पादों को इस कैम्पेन के तहत 20-25 प्रतिशत तक कम कर दिया जाए तो वर्ष 2021 तक लगभग 1 लाख करोड़ रुपए के आयात को कम किया जा सकता है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि चीनी उत्पादों को बैन करना चीन की जगह भारत के लिए ज्यादा नुकसानदायक है। उदाहरण के तौर पर अगर चीन और भारत के बीच व्यापार को पूरी तरह बंद कर दिया जाता है तो चीन को निर्यात का केवल 3 प्रतिशत और आयात का मुश्किल से 1 प्रतिशत नुकसान होगा जबकि भारत को निर्यात का 5 प्रतिशत और आयात का 14 प्रतिशत खोना पड़ेगा। आइये इस रिपोर्ट में जानते हैं कि क्या पूरी तरह बॉयकाट चाइना संभव है।

भारत में चीन से आयात

  • 14.09%चीन
  • 7.58%अमेरिका
  • 6.39% यूएई
  • 54%अन्य

भारत-चीन के बीच हुए विवाद में अब तक क्या हुआ है?
15-16 जून को गलवान घाटी में एलएसी पर चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच हुए विवाद में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए। और 76 जवान घायल हुए। इसके बाद से भारत में चीन को सैन्य के साथ ही आर्थिक तौर पर सबक सिखाने की मांग जोर पकड़ चुकी है। इसमें चीनी सामान का बहिष्कार प्रमुख रूप से शामिल है। इस बीच 19 जून तक दोनों देशों की तरफ से मेजर जनरल स्तर के अफसरों के बीच लगातार बातचीत जारी है। इस बातचीत के बीच चीन ने बंधक बनाए गए 10 सैनिकों को रिलीज कर दिया। 19 जून को भी लगभग 6 घंटे तक बात हुई। हालांकि नतीजा क्या रहा अभी इसकी जानकारी नहीं दी गई है।

भारत ही नहीं दूसरे पड़ोसी देशों से भी चीन के गंभीर विवाद
2017 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार चीन का केवल भारत से ही नहीं उसके पड़ोसी देशाें जापान, फिलिपींस, वियतनाम और मलेशिया से भी गंभीर विवाद हैं। चीन और जापान के बीच स्नेकू द्वीप को लेकर गंभीर विवाद है। यह द्वीप पूर्वी चीन सागर में स्थित है जो कि जापान, चीन और ताइवान के बीच में पड़ता है। दक्षिण कोरियाई विद्वान ली सिओकोऊ के अनुसार चीन ने 1970 में यहां पर ऑयल रिजर्व्ड की जानकारी होने के बाद अपना दावा करना शुरू कर दिया। ऐसे वियतनाम के साथ दक्षिण चीन सागर और सीमा रेखा को लेकर विवाद है। 1979 से 1990 के बीच दोनों देशों के बीच झगड़ा चला।

भारत-चीन के बीच पिछले 5 सालों के आयात-निर्यात को ऐसे समझें

वर्ष निर्यात आयात
2019-20 1,79,766.72 550,786.66
2018-19 208,406.52 618,051.19
2017-18 180,109.23 561,013.18
2016-17 147,557.94 466,009.47
2015-16 138,246.43 443,686.75

किन क्षेत्रों में है व्यापारिक संबंध?
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार चीन भारत को स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिकल उपकरण, खाद, आॅटो कम्पोनेंट, स्टील उत्पाद, टेलीकॉम उपकरण, मेट्रो रेल कोच, लोहा, फार्मास्युटिकल सामग्री, केमिकल आिद बेचता है।

भारत में चीन के सामान का बहिष्कार कितना संभव है?
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019-20 में भारत के कुल निर्यात का 5% अकेले चीन को किया गया जबकि भारत में कुल आयात का 14% अकेले चीन से था। भारत की चीन पर िनर्भरता बहुत अधिक है। स्टेट बैक्ड इन्वेस्ट इंडिया डेटा के अनुसार चीनी उत्पादों के निर्यात के लिए भारत सातवां बड़ा स्थान है। वहीं भारतीय सामानों के निर्यात के मामले में तीसरा बड़ा देश है।

सबसे बड़ा कर्जदाता

चीन और उसकी सहायक कंपनियों ने इस समय1.5 ट्रिलियन डॉलर (~112.5 लाख करोड़) कर्ज दिया हुआ है डायरेक्ट लोन, ट्रेड क्रेडिट के रूप में।

150 से ज्यादा देशों को लोन बांटा है चीन ने। उसके द्वारा बांटा गया लोन वैश्विक जीडीपी के 5% से भी अधिक है।

विश्व बैंक और आईएमएफ से भी बड़ा कर्जदाता
चीन अब विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) से भी बड़ा कर्जदाता बन गया है। विश्व बैंक, आईएमएफ और सभी ओईसीडी समूह की सरकारों द्वारा बांटे गए कुल लोन चीन से कम है।

तो चीन की तुलना में अमेरिका कहां है?

2000 से 2014 के बीच दुनियाभर में दिया कर्ज

  • अमेरिका394.6अरब डॉलर
  • चीन354.4अरब डॉलर

2000 से ज्यादा लोन और 3 हजार से ज्यादा ग्रांट बांटी हैं चीन ने 1949 से 2017 तक। अधिकांश लोन इंफ्रास्ट्रक्चर, एनर्जी और माइनिंग के।हालांकि बाद में अमेरिका ने विदेशी कर्ज में कटौती की और चीन बढ़ाता चला गया।

कई देशों का कर्ज तेजी से बढ़ रहा है
50 प्रमुख विकासशील देशों का चीन से लिया गया उधार 2005 में उनकी जीडीपी के एक फीसदी से भी कम था। जो कि 2017 तक 15% हो गया। कई देशों के लिए यह आंकड़ा 20% तक है।

और भारत की स्थिति

2014 तक चीन ने भारत में 1.6 अरब डॉलर निवेश किया था। अगले तीन सालों में यह 8 अरब डॉलर हुआ। चीन के घोषित प्रोजेक्ट और निवेश योजनाओं को जोड़ लें तो यह आंकड़ा 26 अरब डॉलर है। भारत पर कुल विदेशी कर्ज दिसंबर 2019 तक 563.9 अरब डॉलर था।

स्रोत: एचबीआर, द न्यूयॉर्क टाइम्स, आर्थिक कार्य विभाग (भारत सरकार)। नोट: पाइपलाइन, ब्रिज, पावरप्लांट का आंकड़ा चीन के चुनिंदा 600 प्रोजेक्ट से। उसके अन्य प्रोजेक्ट भी हैं।



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The world stuck in China's debt, 112.5 lakh crore rupees have been distributed to more than 150 countries.


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