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Saturday, 20 June 2020

फिल्म इंडस्ट्री में है 10 बड़े कैम्प का दबदबा; इसीलिए सुशांत सिंह राजपूत जैसे टैलेंट पर भारी पड़ते हैं सेलेब किड्स

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या मामले में अभी तककोई मोटिवनजर नहीं आया है। 15 जून को सुशांत के अंतिमसंस्कार के बाद बॉलीवुड में सेलेब किड्स को लेकरनेपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) और ऑउटसाइडर्स को लेकर होने वालीखेमेबाजी का विरोध जोर पकड़ने लगा है।

इंडस्ट्री की बेचैनी को बढ़ातीं3 बातें

  • कंगना रनोतने सबसे ऊंची आवाज में सीधे करन जौहर को निशाना बनाया।इसके बाद दर्जन भर और भी लोग साथ खड़े हो गए।प्रीतीश नंदी कहते हैं किबॉलीवुड में क्रूरता के लिए गेम नहीं, बल्कि एक गैंगजिम्मेदार है। ये ऐसागैंग है जो सब कुछ कंट्रोल करना चाहता है। ऐसी ही प्रतिक्रियाएं रोज आ रही हैं।
  • पुलिस भी प्रोफेशनल नैपोटिज्म और बॉयकाटवाले एंगल को खंगाल रही है और इसीलिए उसनेसबसे ताकतवर कहे जाने वाले यशराज फिल्म्स से सुशांत के साथ किए कॉन्ट्रेक्ट की दस्तावेज ले लिए हैं। पुलिस रिया चक्रवर्ती के रोल को भी बहुत बारीकी से जांच रही है, क्योंकि सुशांत की तीन कंपनियों में से दो में रिया पार्टनर थी।
  • गुटबाजी, नैपोटिज्म और बॉयकॉट जैसे शब्द अटके और नए प्रोजेक्ट्स पर भारी न पड़ जाए,इसके लिए बकायदा कई जगह से ये मैसेज भिजवाए जा रहे हैं कि सुशांत ने डिप्रेशन के कारण जान दी, उनके पास काम की कोई कमी नहीं थी।
  • 10 जनवरी 2019 की पीएम मोदी के साथ बॉलीवुड सितारों की सेल्फी और करन जौहर का मैसेज।

आज की रिपोर्ट में समझते हैं बॉलीवुड में कैम्पों की ताकत और उनके काम का तरीका

  • बॉलीवुड बोले तो एक बड़ा गांव और कई किसान

मुम्बई बेस्ड भारत की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री वास्तव में धड़ों में बंटी है। यहां किसी एक की सत्ता नहीं चलती बल्कि, कई बड़े ग्रुप्स का दबदबा चलता है। इन्हें कैम्प कहते हैं। फिल्म उद्योग को करीब से जानने वाले आशुतोष अग्निहोत्री कहते हैं कि बॉलीवुड को ऐसे बड़े गांव की तरह मान सकते हैं, जहां ताकतवर किसान अपने-अपने खेतों में अपने-अपने हिसाबसे फसल उगाते हैं।

वास्तव में बॉलीवुडकिसी एक जगह का नाम नहीं है। बहुत से लोग अंधेरी में यशराज वाली सड़क यानि वीरा देसाई रोड को या वर्सोवाको ही बॉलीवुड समझते हैं, तो बहुत से लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स को, लेकिन असल में पूरी मुंबई में अलग-अलग इलाकों में कई स्टूडियो और ऑफिस फैले हुए हैं जो अपनी जगह बदलते भी रहते हैं।

फिल्म सिटी (दादासाहेब फाल्के चित्रनगरी) गोरेगांव में है। छोटी फिल्मों का कुछ हिस्सा गोरेगांव और ओशिवारा में बनता है।आदर्श नगर में भोजपुरी फिल्में बनतीं हैं, जिसके लिए लोग यूपी-बिहार से आते हैं और यहां से फिल्मबनाकर चले जाते हैं। जुहू, ओशिवारा औरमड आयलैंड के बंगले वालेइलाकों की पहचानटीवी शोज की शूटिंगके लिएहैं।

  • टैलेंट की मारामारी, इसी से बनती किस्मत और होती कमाई सारी

ट्रेड एक्सपर्ट कहते हैं कि, 107 साल कीफिल्म इंडस्ट्री में भी कई तरहकैंप रहे हैं। एक दौर था जब राज कपूर, देवआनंद, राजेंद्र कुमार और दिलीप कुमार के कैंप हुआ करते थे। फिर अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना का कैंप था। आगे मिथुन औरअनिल कपूर और फिरशाहरुख और सलमान खान का कैंप शुरू हुआ।

अब यशराज, भंसाली प्रोडक्शन, नाडियाडवाला, टी-सीरीज, बालाजी टेलीफिल्म्स,यूटीवी मोशन पिक्चर्सऔर धर्मा प्रोडक्शन जैसेबड़े कैंप बन गए हैं। इन कैंपों की ताकत का अंदाजा उनके पास मौजूद स्टार्स की तादाद से लगने लगा है। उन्हीं प्रोड्यूसर्स के साथ फिल्मों के करार होने लगे,जिनके पास स्टार या फिर स्टार किड्स का पूल होता है।

  • ऐसे होता है टैलेंट मैनेजमेंट

इन कैंपों ने बॉलीवुड में टैलेंट मैनेजमेंट शुरू किया। वे जिन टैलेंट को लॉन्च करते थे, उनके साथ तीन फिल्मों का करार होता है। उसके तहत कलाकार किसी और बैनर के साथ काम नहीं कर सकता। यह करार लिखित और अनकहा दोनों फार्मेटमें हो सकता है।

सुशांत सिंह राजपूत काफी टैलेंटेड थे। उन्हें बहुत जल्दी नेम फेम मिल गया था। उन्हें बाहर की फिल्में भीकाफी मिल रही थी परन्तु एग्रीमेंट के चलते ये साइन नहीं कर पा रहे थे।पेशेवर गुटबाजी के कारण वे डिप्रेशन में आ गए थे और आरोप लग रहे हैं कि उन्हें7 फिल्मों से निकाला गया था और दो फिल्मेंरिलीज नहीं होने दी गईं।

सुशांत प्रकरण के बाद यह बातसाफ हो गई है कि बड़े प्रोडक्शन हाउसेज में टैलेंट की मारामारी है। जिनके पास जितना बड़ा टैलेंट, उसके बैनर की फिल्म या वेब शो की उतनी बड़ी कीमत।

  • 2019 में बॉलीवुड इंडस्ट्री ने 4000 करोड़ की रिकॉर्ड कमाई की थी, और इसमें बड़े बैनरकी टॉप टेन फिल्मों की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी थी।
  • स्मार्ट और कार्पोरेट तरीके से चलते हैं कैम्प

किसी कलाकार को साइन करते वक्त बड़े बैनर्स एग्रीमेंट करते हैं। नए टैलेंट के लिएबड़े बैनर्स में काम करने से शोहरतमिलने की संभावना जल्दी औरज्यादा होतीहै। लेकिन, एग्रीमेंट के समय दिमाग में ही नहीं आता कि, आगे क्या होगा।

ट्रेड पंडितों के मुताबिक, करन जौहर और साजिद नाडियाडवाला जैसे लोग पुराने और स्मार्ट प्रोड्यूसर हैं। ये कॉर्पोरेट प्रोड्यूसर फिल्मों में अपनी जेब के बजाय,कॉर्पोरेट स्टूडियोज का पैसा लगवाते रहे हैं। कॉर्पोरेट स्टूडियोज इसीनियम पर काम करते हैं औरजिस किसी के पास पुराना या उभरता हुआ कलाकार है, उसकी ही फिल्म पर वो पैसा लगाते हैं।

  • इंडस्ट्री के सबसे स्मार्ट प्लेयर हैं करन जौहर

करन जौहर ने माय नेम इज खान से यह सिलसिला शुरू किया था। उनकी फॉक्स स्टार इंडिया के साथ तब डील हुई थी। फॉक्स स्टार इंडिया अब डिज्नी इंडिया है। फॉक्स स्टार और करन जौहर की 200 करोड़ की डील हुई थी। उस 200 करोड़ रुपए में करन जौहर को छह फिल्में बनाकर फॉक्स को देनी थी। दोनों के बीच संबंध मजबूतहुए तो डील 9 फिल्मों की हुई। दोनों के बीच आखिरी फिल्म कलंक थी।

फ्लॉप रही कलंक तक उनके रेट बढ़ गए थे। फॉक्स से करन जौहर को करीब100 करोड़ रू. मिले थे। करन इसकी भरपाई करने वाले थे। 30 करोड़ फॉक्स को लौटानेथे। ऐसा हुआ या नहीं, यह पता नहीं चला। करन अब वेब शो बना रहे हैं। शोज कीपूरी डील नेटफ्लिक्स के साथ है। करन की अलग कंपनी धर्माटिक वेब शो बनाती है और अभी वह सिर्फ नेटफ्लिक्स के लिए ही बनाएगी,दूसरे किसी के लिए नहीं।

  • होमवर्क करके लॉन्च करते हैं स्टार किड्स

जानकार इन बातों पर जोर देते हैं कि करन जौहर या किसी और की मोटी कमाई तब होगी, जब उनकी फिल्म और वेब शो में बड़े चेहरे हों या फिर ऐसे चेहरे, जिनका सोशल मीडिया पर दबदबा हो। यही वजह है कि वह जिस भी किसी स्टार किड्स को लॉन्च करते हैं तो उससे पहले उन सबका इंस्टाग्राम फेसबुक और ट्विटर अकाउंट मजबूत करवा देते हैं। वहां पर तस्वीरेंवीडियो और इमोशनल पोस्टडलवा कर उस स्टार की फैन फॉलोइंग को ज्यादा करवा देते हैं। मां बनने के बाद करीना कपूर खान की रीलांचिंगइसका उदाहरणहै।

  • टैलेंट रिटेन करना यशराज ने सिखाया

टैलेंट को रिटेन करने का चलनयशराज ने शुरू किया। शाहरुख के बादउनके पास रणवीर सिंह, रणबीर कपूर, दीपिका पादुकोण, अनुष्का शर्मा, भूमि पेडणेकर, अर्जुन कपूर जैसे टैलेंट की लंबी फेहरिस्त है। डायरेक्टर के तौर पर शरद कटारिया, अली अब्बास जफर, कबीर खान उनके साथ कॉन्ट्रेक्ट में रहे हैं।

यशराज का फिल्में या वेब शो बनाने का तरीका करन जौहर से थोड़ा अलग है। वे सब कुछ अपने दम पर ही करते है। वेकिसी स्टूडियो के साथ जल्दी कोलेबरेट नहीं करते,खुद फिल्मेंबनाते हैं। मार्केटिंगकरते हैं और आखिर में डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भीबेचते हैं। यशराज की फिल्मों के राइट्स सबसे ज्यादा सैटेलाइट पर मजबूती से बिकते हैं।

  • कोई नहीं टालता साजिद नाडियाडवाला की बात

साजिद नाडियाडवाला के पास भी अपना उभरता टैलेंट पूल है। टाइगर श्रॉफ, कृति सैनन, नवाजुद्दीन सिद्दीकीजैसे नाम इनके साथ देखे जाते हैं। बाकी, साजिद नाडियाडवाला का इंडस्ट्री में कद इतना बड़ा है कि वह सलमान, अक्षय कुमार जैसों को कह दें तो लोग उनकी फिल्म मना नहीं करते हैं।

ऐसे एक्टर्स को अपने साथ लाने में जहां बाकी सुनील दर्शन, रतन जैन, अब्बास मस्तान, वीनस, टिप्स जैसे प्रोड्यूसर्स को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है, वहीं साजिद नाडियाडवाला जैसे प्रोड्यूसर के लिए यह बाएं हाथ का खेल होता है। टैलेंट न होने की वजह से ही इंडस्ट्री के पुराने खिलाड़ियों को फिल्म बनाने में मुश्किल होती है।

  • म्यूजिक सेफिल्मों तक भूषण कुमार का दबदबा

टी-सीरीज के काम करने का तरीका भी यशराज की तरह है। वह भी किसी कॉरपोरेट्स स्टूडियो के साथ कोलेबरेट नहीं करता। अपने दम पर फिल्में बनाता है। कहा जाता है कि यूट्यूब से ही उसे 100 करोड़ की आमदनी लगातार होती रहती है। वे म्यूजिक के पैसों को फिल्मों में लगाते हैं और वहां से म्यूजिक के साथ अच्छी कमाई करते हैं।

अमेजॉन प्राइम के साथ उनकी डील होती रही है। ज्यादातर फिल्में उसी प्लेटफार्म पर गई हैं। इसके अलावा नेटफ्लिक्स और ज़ीवाले भी उसके साथ जुड़नेको तैयार रहते हैं। कॉरपोरेट स्टूडियो के बजाय टी-सीरीजअजय देवगन जैसे बड़े सितारों के साथ मिलकर फिल्में प्रोड्यूस करना ज्यादा पसंद करता है, क्योंकि इसमें प्रॉफिट शेयर ज्यादा होता है।

कहा जाता है कि संगीत जगत में अगर पत्ता भी हिलता है तो भूषण कुमार की मर्जी पूछनी पड़ती है। जैसे, स्ट्रीट डांसर शूट होने से पहले ही अमेजॉन ने 60 करोड़ में खरीद लीथी। उसके सैटेलाइट राइट्स 40 करोड़में बिके।ऐसे में सिनेमाघरों से कम पैसे आने और फ्लॉप होने के बावजूद फिल्म हिट होकरप्रॉफिट दे गई थी।

  • अब समझिए टेबल प्रॉफिट का गणित

टी-सीरीज एक्टर्स का पूल बनाकर तो नहीं रखता, मगर उसकी मार्केटसाख बहुत मजबूत है। कोई भी स्थापित या उभरता हुआ सितारा इस बैनर का नाम सुनने पर किसी भी डायरेक्टर की फिल्म साइन कर देता है। मजे की बात यह है कि ऐसे हालातों में फिल्में रिलीज होने से पहले ही इनमें से किसी बड़े प्रोड्यूसर को प्रॉफिट दे चुकी होती हैं। इसे तकनीकी भाषा में टेबल प्रॉफिट कहा जाता है।

इन प्रोडक्शन हाउसेस की तरफ से किसी भी डायरेक्टर या राइटर को सीधा इशारा रहता है कि आप अपनी कहानी पर किसी भी स्टार का कंसेंट लेटर लेकर आइए और हम फिल्म प्रोड्यूस करेंगे।

एक बड़े ट्रेड एक्सपर्ट ने नाम न छापने की शर्त पर कहा- ‘भंसाली तो हाल के वर्षों में स्टूडियो को भी चैलेंज करने लगे हैं। पिछले साल सलमान खान के साथ बड़ी फिल्म इंशाअल्लाह इसलिए नहीं बन पाई, क्योंकि स्टूडियो से ज्यादा कमाई का शेयर वह खुद चाहते थे। मगर सलमान ने ऐसा नहीं होने दिया।

दुर्भाग्य की बात यह थी की फिल्म बनने से पहले ही कमाई का बंटवारा आपस में हो रहा था। स्टूडियो ने एक हद तक भंसाली की मांग मानी, मगर जब पानी सर से ऊपर चला गया तो उसने भी इंशाल्लाह से हाथ पीछे खींच लिए।

सुशांत की आत्महत्या के बाद टैलेंट vs नेपोटिज्म के नाम पर ये तस्वीर खूब वायरल हो रही है।

ट्रेड से जुड़े 3 एक्सपर्ट्स की नजर में बॉलीवुड में खेमेबाजी

  • नेपोटिज्म हावी, सब कुछ 5 - 6 बैनरों में सिमट गया हैं: नरेंद्र गुप्ता, फिल्म क्रिटिक

पिछले कई सालों में नेपोटिज्म बहुत हावी हुआ है जो कुछ 5 - 6 बैनरों में सिमट गया है। अगर आप इन बैनरों से जुड़े लोगों की चमचागिरी ना करो, उनके हां में हां नमिलाओ तो ये लोग आपको इंडस्ट्री में नहीं रहने देते हैं। ये इस इंडस्ट्री की सच्चाई है।

सुशांत डिप्रेशन में थे इसमें कोई शक नहीं हैं। उनके डिप्रेशन की वजह थी, उन्हें फिल्में ना मिल पाना। एक आर्टिस्ट जिसे 'एम.एस. धोनी' और 'छिछोरे' जैसी दो बड़ी फिल्में दी हो और उसके बाद उनके पास एक भी फिल्म ना होना, ये आश्चर्य की बात है। छिछोरे के बाद जो उन्होंने फिल्में साइन की थीं वो उनके हाथों से क्यों निकल गईं, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

  • करन जौहर जो कर रहे हैं वह 'फेवरेटिज्म' हैं: अमोद मेहरा, क्रिटिक और जर्नलिस्ट

मेरे हिसाब से 'नेपोटिज्म' के नाम पर डिबेट होना ही नहीं चाहिए। सुशांत की मौत के बाद भी डिबेट नहीं बल्कि, एक कैंपेन चल रहा हैं। नेपोटिज्म उसे कहते हैं जो खुद अपने बच्चे को प्रमोट करे। करन जौहर अपने बच्चे को प्रमोट नहीं कर रहा है। वो तो दूसरों के बच्चों को प्रमोट कर रहेहैं, जिसका मतलब है कि वो एक सही बिजनेसमैन हैं। उन्हें पता हैकि अपना काम कैसे करवाना है। इसे 'नेपोटिज्म' नहीं बल्कि 'फेवरेटिज्म'कहा जाता है।

ये पूरी दुनिया में चलता आ रहा है। अगर कोई अपने फैमिली मेंबर या अपनी फेटरनिटी के लोगों के साथ काम करना चाहे तो वो गलत नहीं है। हमारीइंडस्ट्री में ऐसे कई लोग हैं। सिर्फ एक्टर्स ही नहीं बल्कि अलग-अलग डिपार्टमेंट से जहां उन्होंने अपने बच्चों को लॉन्च किया, लेकिन वो सफलनहीं हो पाए।

  • स्टार किड्स हो तो सक्सेस रेट बढ़ जाती है: अतुल मोहन, ट्रेड एनालिस्ट

इंडस्ट्री में 'नेपोटिज्म' आज से नहीं बल्कि दशकोंसे है। सुशांत के दिमाग में क्या था, ये कदम उठाने से पहले ये कोई नहीं जानता और जान भी नहींपाएगा।वो करियर में काफी अच्छा कर रहे थे। देखिए, इस जनरेशन को समझना होगा किहिम्मत से काम करना चाहिए।

इस बात से इनकार नहीं कि स्टार किड्स का किसी प्रोजेक्ट में होना उसकी सक्सेस रेट बढ़ा देता है। लोगों के बीच में एक्साइटमेंट बढ़ जाती है।मार्केटिंग अच्छी होती हैऔरयदि आपकी फिल्म का कंसेप्ट अच्छा हो तो फिल्मचल जाएगी, लेकिन लोगों को उस फिल्म तक खींच कर लाने के लिए ये स्टार किड्स फायदेमंद होते हैं।



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source https://www.bhaskar.com/entertainment/news/sushant-singh-rajput-suicide-and-nepotism-in-bollywood-film-industry-127429378.html

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